सुमिरिनी के मनके
बालक बच गया
पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी
परिचय
- बालक बच गया लघु निबंध मे यह बताया गया है की बच्चों को उनकी आयु के अनुसार ही शिक्षा दी जानी चाहिए , ताकि उनका स्वाभाविक विकास हो सके |
पाठशाला का वार्षिकोत्सव :-
- लेखक को एक पाठशाला के वार्षिकोत्सव पर आमंत्रित किया गया था, और वहां पर प्रधान अध्यापक का आठ वर्षीय पुत्र भी वहीं था |
- उसकी आँखे सफ़ेद थी, मुंह पीला था और दृष्टि भूमि से उठती नहीं थी |
- उस बालक से लगातार प्रश्न पूछे जा रहे थे और वह उन प्रश्नों के रटे रटाये उत्तर दिए जा रहा था |
बालक की योग्यता से ऊपर पूछे गए प्रश्न :-
- बालक से धर्म के दस लक्षण पूछे गए वह सुना गया
- बालक से नौ रसों के उदाहरण पूछे गए " वह सुना गया*
- पानी के 4 डिग्री के नीचे शीतता में फ़ैल जाने का कारण और उससे मछलियों की प्राणरक्षा के बारे में पूछा गया ,,,, वह सुना गया
- चंद्रग्रहण का वैज्ञानिक समाधान उसने सुना दिया
- इंग्लैंड के राजा आठवें हेनरी की स्त्रियों के नाम और पेशवाओं का कुर्सीनमा सुना गया
- उससे पूछा गया की तू क्या करेगा, उसने वही सीखा सिखाया उत्तर दिया की मैं यावज्जीवन लोकसेवा करूंगा ।
- सभी वाह वाह करने लगे और पिता का हृदय उल्लास से भर उठा |
बालक ने ईनाम में क्या माँगा :-
- एक वृद्ध महाशय ने बालक के सिर पर हाथ फेर आशीर्वाद दिया और कहा की जो तुझे ईनाम में चाहिए वही मिलेगा |
- बालक कुछ देर सोचने लगा ( उसके पिता और अध्यापक इस चिंता में लगे थे की यह पढाई का पुतला कौन से पुस्तक ईनाम में मांगेगा )बालक थोडा सा खांसा और गला साफ़ कर धीरे से बोला “लड्डू” .
- बालक के पिता और अध्यापक निराश हो गए ।
लेखक ने सुख की साँस भरी :-
- जब बालक ने ईनाम में लड्डू माँगा तब जाकर लेखक ने सुख की सांस भरी |
- और बालक ने कोई रटा रटाया उत्तर नहीं दिया बल्कि यह उसका स्वाभाविक उत्तर था, और बालक बाख गया था |
- इससे पता चला की बालक का बचपना अभी कहीं ना कहीं उसमे जीवित था |
परिचय
- घड़ी के पुर्जे निबंध के माध्यम से लेखक ने धर्म के रहस्यों को जानने पर धर्म उपदेशकों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को घड़ी का उदाहरण देकर पेश किया है |
धर्म का रहस्य
- धर्मोपदेशक उपदेश देते समय कहते हैं की बातों को गहराई से जानने की इच्छा हर व्यक्ति को नहीं करनी चाहिए |
- जो कुछ उपदेशक बताते हैं उसे चुपचाप सुन लेना चाहिए और स्वीकार कर लेना चाहिए |
- और वे घड़ी का उदाहरण देते हुए बताते हैं की यदि आपकों समय जानना हो तो जिसे घड़ी देखनी आती हो , उससे समय जानकर अपना काम चला लेना चाहिए ।
- लेकिन आप इतने से संतुष्ट नहीं होते तो स्वयं घड़ी देखना सीख सकते हैं ।
- किन्तु मन में यह इच्छा नहीं करनी चाहिए की घड़ी को खोलकर इसके पुर्जे गिनकर उन पुर्जों को यथा स्थान लगाकर घड़ी बंद कर दें।
- यह काम साधारण व्यक्ति का नहीं, विशेषज्ञ का है, इसी प्रकार धर्म के रहस्यों को जानना भी केवल धर्माचार्यों का काम है |
लेखक की सोच :-
- लेखक कहता है की घड़ी खोलकर ठीक करना कठिन काम नहीं है, साधारण लोगों में से ही बहुत लोग घड़ी को खोलकर ठीक करना सीखते भी हैं और दूसरों को सीखाते भी हैं।
- इसी प्रकार धर्माचार्यों को आम आदमियों को भी धर्म के रहस्यों की जानकारी देनी चाहिए |
- धर्म का ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद कोई व्यक्ति धर्म के विषय में मूर्ख नहीं बन सकता |
- लेखक धर्माचार्यों से यह भी कहता है की यदि वे लोगों को धर्म के बारे में शिक्षित करेंगे तो इससे यह भी पता चलता है की स्वयं धर्माचार्यों को कितनी जानकारी है ।
- लेखक स्वयं को धर्म का ठेकेदार समझने वाले धर्माचार्यों पर व्यंग्य करते हुए कहता है की ये लोग दूसरों के धर्म का रहस्य जानने से रोकते हैं क्योंकि स्वयं उन्हें धर्म की पूरी जानकारी नहीं है ।
परिचय
- इस निबंध के माध्यम से लेखक ने हमारे समाज मे प्रचलित कुछ अंधविश्वासों पर प्रहार किया है |
दुर्लभ बंधुओं की पेटियों की कथा :-
- हरिश्चन्द्र के नाटक 'दुर्लभ बंधु' में पुरश्री के सामने तीन पेटियां हैं - एक सोने की दूसरी चांदी की और तीसरी लोहे की |
- तीनो में से एक में उसकी प्रतिमूर्ति है |
- स्वयंवर के लिए जो आता है उसे कहा जाता है की इनमे से एक को चुन लो |
- अकडबाज सोने को चुनता है और उलटे पैर लौटता है ।
- लोभी को चांदी की पिटारी अंगूठा दिखाती है |
- सच्चा प्रेमी लोहे को छूता है और घुड़दौड़ का पहला इनाम पाता है अर्थात उसकी ही शादी होती है |
वैदिक काल में हिन्दुओं की लाटरी :-
- ठीक ऐसी ही नाटरी वैदिक काल में हिन्दुओं में चलती थी ।
- यह लाटरी जीवन साथी का चुनाव करने के लिए हुआ करती थी |
- इस लाटरी में विवाह का इच्छुक युवक कन्या के पिता के घर जाता था और उसे गाय भेंट करने के बाद कन्या के सामने कुछ मिट्टी के ढेले रख कर उनमे से एक ढेला चुनने को कहता था |
- इन ढेलों को कहा से लाया गया था, यह केवल युवक जानता था कन्या नहीं जानती थी |
- यदि कन्या युवक की इच्छानुसार ढेले चुन लेती तो युवक उसे अपना जीवनसाथी बना लेता था
ढेलों का चुनाव
- ठेलों का चुनाव करते समय यह माना जाता था की यदि कन्या वेदी का ठेला उठा ले तो संतान 'वैदिक पंडित’ |
- यदि गोबर चुना तो 'पशुओं का धनी’ ।
- खेती की मिट्टी छ्र ली तो जमींदार पुत्र होगा ।
- परन्तु ऐसा नहीं था की मसान की मिट्टी छूने वाली कन्या का कभी विवाह नहीं होगा यदि वाही कन्या किसी अन्य युवक के सामने कोई ढेला उठा ले तो उसकी विवाह हो जाता था ।
- ढेलों के आधार पर जीवनसाथी का चयन आज के लोगों को कोरा अन्धविश्वास प्रतीत हो सकता है, परन्तु लेखक का मानना है की आज भी ज्योतिष गणना, कुंडली तथा गुणों का मिलान के आधार पर विवाह तय किया जाता है और लेखक इसे अनुचित समझता है ।
लेखक की सोच
- लेखक का मानना है की जो हमारे पास आज है उसी पर निर्भर होना अच्छा है बजाए उस चीज़ के जिसकी हमें भविष्य में मिलने की उम्मीद है ।
- भविष्य अनिश्चित है, पता नहीं वह वस्तु हमें मिले या न मिले ।
- इसलिए भविष्य की अपेक्षा वर्तमान पर विश्वास करना उचित होता है।